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न ता मि॑नन्ति मा॒यिनो॒ न धीरा॑ व्र॒ता दे॒वानां॑ प्रथ॒मा ध्रु॒वाणि॑। न रोद॑सी अ॒द्रुहा॑ वे॒द्याभि॒र्न पर्व॑ता नि॒नमे॑ तस्थि॒वांसः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na tā minanti māyino na dhīrā vratā devānām prathamā dhruvāṇi | na rodasī adruhā vedyābhir na parvatā niname tasthivāṁsaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। ता। मि॒न॒न्ति॒। मा॒यिनः॑। न। धीराः॑। व्र॒ता। दे॒वाना॑म्। प्र॒थ॒मा। ध्रु॒वाणि॑। न। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒द्रुहा॑। वे॒द्याभिः॑। न। पर्व॑ताः। नि॒ऽनमे॑। त॒स्थि॒ऽवांसः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:56» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छप्पनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में ईश्वर के गुणों को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! ईश्वर ने (देवानाम्) यथार्थवादी विद्वानों के जो (प्रथमा) आदि में वर्त्तमान (ध्रुवाणि) अखण्डित (व्रता) उत्तम कर्म उपदेश किये गये वा रचे गये (ता) उनका (मायिनः) निन्दित बुद्धिवाले (न) नहीं (मिनन्ति) नाश करते हैं (धीराः) ध्यान करनेवाले श्रेष्ठ पुरुष नहीं नाश करते हैं (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी (न) नहीं नाश करते हैं (अद्रुहा) द्रोह से रहित अध्यापक और उपदेशक (न) नहीं नाश करते हैं (वेद्याभिः) जानने के योग्य प्रजाओं के साथ (निनमे) नवने के योग्य स्थान में (तस्थिवांसः) स्थित होते हुए (पर्वताः) पर्वत (न) नहीं नाश करते हैं, उनको आप जान के आचरण करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - किसी का भी सामर्थ्य नहीं है कि जो ईश्वर के किये हुए नियमों का उल्लङ्घन करै और जिस परमेश्वर के भ्रमरहित सुखरूप कर्म हैं, उसी दयानिधि परमेश्वर की सब लोग उपासना करो ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरगुणानाह।

अन्वय:

हे मनुष्या ईश्वरेण देवानां यानि प्रथमा ध्रुवाणि व्रतोपदिष्टानि निर्मितानि वा ता मायिनो न मिनन्ति धीरा न मिनन्ति रोदसी न मिनुतोऽद्रुहा न मिनुतो वेद्याभिस्सह निनमे वर्त्तमानास्तस्थिवांसः पर्वताश्च न मिनन्ति तानि यूयं विदित्वाचरत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) (ता) तानि (मिनन्ति) हिंसन्ति (मायिनः) निन्दिता माया प्रज्ञा येषान्ते (न) (धीराः) ध्यानवन्तः श्रेष्ठाः (व्रता) उत्तमानि कर्माणि (देवानाम्) आप्तानां विदुषाम् (प्रथमा) आदिमानि (ध्रुवाणि) अखण्डितानि (न) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अद्रुहा) द्रोहरहितावध्यापकोपदेशकौ (वेद्याभिः) वेत्तुं योग्याभिः प्रजाभिः (न) निषेधे (पर्वताः) शैलाः (निनमे) नमनीये स्थाने (तस्थिवांसः) तिष्ठन्तः ॥१॥
भावार्थभाषाः - नहि कस्यापि शक्तिरस्ति य ईश्वरकृतान्नियमानुल्लङ्घेत यस्य निर्भ्रमानि शन्तमानि कर्माणि सन्ति तमेव दयानिधिं परमेश्वरं सर्व उपासीरन् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात ईश्वर, जग व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - ईश्वराच्या नियमांचे उल्लंघन करण्याचे सामर्थ्य कुणातही नाही व ज्या परमेश्वराचे कर्म भ्रमरहित आहे त्याच दयानिधी परमेश्वराची सर्व लोकांनी उपासना करावी. ॥ १ ॥